नरेन्द्र जी के निधन पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त किया:
सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है। साहित्य में पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के जीवंत चित्रण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!
— Narendra Modi (@narendramodi) April 17, 2021
राष्ट्रपति का शोक संदेश:
प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली के निधन से बहुत दुख हुआ। हिंदी साहित्य जगत में उनका विशेष योगदान रहा है। उन्होंने हमारे पौराणिक आख्यानों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। पद्मश्री से सम्मानित श्री कोहली के परिवार और पाठकों के प्रति मेरी शोक संवेदना।
— President of India (@rashtrapatibhvn) April 17, 2021
कुछ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित श्रद्धांजलि और समाचार:
श्रद्धांजलि सभाएँ तथा अन्य कार्यक्रम:
चौथे पर आयोजित पारिवारिक शोक सभा:
तेहरवीं पर आयोजित साहित्यिक श्रद्धांजलि सभा:
हंसराज कौलेज द्वारा आयोजित कार्यक्रम:
साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित सभा:
दैनिक जागरण / हिंदी हैं हम की श्रद्धांजलि सभा
सोशल मीडिया पर प्रेषित कुछ संदेश:
@@@ आज के रामकथावाचक डॉ. नरेन्द्र कोहली का गोलोक गमन @@@ हिंदी साहित्य को विज्ञानसम्मत-तर्कसम्मत रामकथा देकर आस्था को...
Posted by राहुल मिश्र on Saturday, April 17, 2021
Jai Sri Ram! On this #Ramanavmi, we present a few excerpts from an essay titled “Abhyuday, a Ram-Kathā for Modern...
Posted by Beloo Mehra on Tuesday, April 20, 2021
सृजन के उन्नत शिखर - स्मृतियों का खूबसूरत सफर - स्मृति-शेष पद्मश्री डा नरेंद्र कोहली
- पद्मा मिश्रा, कवयित्री कथाकार, जमशेदपुर झारखंड
कुछ भी शेष नहीं रहता बस यादें रह जाती है, आज हमारी यादों में शेष रह गए पद्मश्री स्मृति शेष आदरणीय नरेन्द्र कोहली का यूं अचानक चले जाना व्यथित करता है। जमशेदपुर प्रवास के दौरान, अक्षर कुंभ में उनका सान्निध्य, उनसे जुड़ी घटनाएं, उनके वक्तव्य, आज बहुत याद आते हैं।
कल ही उनके निधन की सूचना मिली,,बहुत ही दुखद समाचार, सहसा विश्वास ही नहीं हो रहा है कि वे अब हमारे साथ नहीं रहे। अभी कुछ दिनों पूर्व आपका आशीर्वाद मिला व्हाट्स ऐप पर, और अभी यह हृदय विदारक खबर मिली है। हमारी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ हो गई। मन बार बार कह रहा था कि यह खबर सच न हो, लेकिन कोरोना क्रूर काल बन कर उनको हमसे छीन ले गया। अब रोज मिलने वाले उनके स्नेहाशीष से वंचित हो गयी हूं, यह बात बहुत पीड़ा पहुचा रही है।
यह हमारा सौभाग्य था कि हम डॉ नरेन्द्र कोहली के समय में रहे हैं उनके सृजन और लेखकीय योगदान को पढ़ने, सुनने और उन्हें आत्मसात करने का अवसर हमें मिला है। डॉ कोहली भी एक जन्मजात लेखक और सचमुच तुलसी का दूसरा अवतार थे। मेरी दृष्टि में किसी भी लेखक या साहित्यकार का पहला उद्देश्य होता है समाज का हित, कल्याण करना - माध्यम कोई भी हो, कविता, कहानी, लेख या अन्य कोई विधा, उद्देश्य कल्याणकारी हो तो वह सफल है। डॉ कोहली ने हिंदी साहित्य में एक नयी परंपरा या विधा जो कहें कि पौराणिक चरित्रों के माध्यम से वर्तमान, आधुनिक परिस्थितियों, पात्रों व चरित्रों का मूल्यांकन करते हुए सामाजिक समस्याओं के सुंदर समाधान भी खोजे थे। बात ''महासमर'' की हो या ''तोड़ो कारा तोड़ो'' या ''वसुदेव'' या रामकथा, ''पूत अनोखो जायो'' जैसी रचनाएँ समाज की चेतना को झकझोरती हैं, जगाती हैं, और जन मानस में परिस्थितियों से लड़ने-जूझने की राह सरल बनाती हैं। वे स्वयं कहते हैं --''लेखक के मन में बड़ी कामना होती है कि समाज में समरसता हो, न्याय हो, अत्याचार का राक्षस मारा जाये।''
लगभग 15 वर्षों से जमशेदपुर के ''अक्षर कुम्भ '' में तीन दिन तक उनके साथ रहने, उन्हें सुनने समझने का अवसर मिलता रहा है। उस समय पूरे सभागार का वातावरण किसी कालेज की हिंदी कक्षाओं की तरह होता था, कोहली जी प्रोफेसर और हम सब उनके छात्र, छात्राएं। जब वे मंच से बोलते तो सभी के मोबाइल फोन बंद करवा दिए जाते थे, कोई आवाजाही भी नहीं, साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, श्रोता सभी शांत, एकाग्र चित्त होकर उनको सुनते थे। मैं जब भी अपनी कहानियां और आलेख पत्र अक्षर कुंभ के मंच से पढ़ती थी, उन्होंने हमेशा अपना आशीर्वाद दिया और ज़रूरी बदलाव या सुधार की सलाह भी देते थे। मुझे 'अक्षर कुम्भ अभिनन्दन सम्मान' भी उन्हीं के हाथों मिला था। उस दिन व्यास सम्मान और पद्मश्री मिलने पर भी उनसे बात हुई थी। बड़े खुश थे "तुम्हें बहुत ख़ुशी है न?" उनका वात्सल्य भाव बहुत अभिभूत करता था। उन्होंने बधाई देने पर आशीर्वाद दिया -''यशस्वी हो, और अच्छा लिखो।'' उनका आशीर्वाद आज भी व्हाट्स एप पर भेजी मेरी सुप्रभात की शुभकामनाओं के उत्तर में "सुखी रहो, प्रसन्न रहो" आशीष के रुप में मिलता है जो मेरी प्रेरणा है और मेरे सृजन को ऊर्जस्वित करता है। पिछले वर्ष विश्व पुस्तक मेले से उनकी पुस्तक शरणम् और सागर मंथन खरीद कर लाई थी। वे यश की उच्चतम ऊँचाइयोंको छुएँ, उनका सृजन कल्याणकारी हो, यह कामना की थी। उनकी सद्य कृति सागर मंथन के लिए हृदय से अशेष शुभकामनाएं भी दी थीं। उनकी अंतिम कृति "समाज जिसमें मैं रहता हूँ" में उन्होंने समाज के विभिन्न रूपों पर सारगर्भित चर्चा की है और इस संबंध में एक साक्षात्कार का वीडियो भी भेजा था। अब सब कुछ सिर्फ़ यादों में शेष रह गया है। आपकी स्मृतियों को अपनी धरोहर बनाए हम सब कलम के सिपाहियों का शत-शत नमन नमन आपकी लेखनी को। अशेष सादर प्रणाम सर!!
विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं 🙏
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